श्रीरंगलक्ष्मी आदर्श संस्कृत महाविद्यालय

वृन्दावन, मथुरा , उ.प्र. -२८११२१

(शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार एवं केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जनकपुरी, नई दिल्ली की आदर्श योजना के अंतर्गत)

व्याकरण

व्याकरण

संस्कृत साहित्य में व्याकरण का अपना विशेष स्थान है। प्राचीन काल से ही वेदांगों में इसकी गणना की गयी है और “मुखं व्याकरणं स्मृतम्” कहकर इसे स्थानीय माना गया है। भगवान पाणिनि द्वारा निर्मित व्याकरण को पाणिनीय व्याकरण कहा जाता है।
प्राचीन आर्ष शब्दावली में एक ही जलीय व्याकरण है जो वर्तमान समय में सभी प्रकार से उपलब्ध है। यह संत महारांव में भटक रहे मानव रूपी जहाजों को अपशब्दों के रूप में बचाकर साधुओं के समूह के रूप में इष्ट स्थान का मार्ग बताते हैं।
प्राचीन संस्कृत साहित्य से यह प्रतिपादित होता है कि सभी शास्त्रों का प्रारम्भ भगवान ब्रह्मा ने किया था। उसके बाद देवगुरु बृहस्पति ने व्याकरण का उपदेश दिया। फिर देवराज इंद्र, भरद्वाज, ऋषियों, ब्राह्मणों ने ऐसा किया
मध्यकाल में शकटायन, स्फोटायन आदि ने किया। इसके बाद के काल में भगवान पाणिनि तथा इससे सम्बंधित आचार्यों ने किया। इस प्रकार गुरु-शिष्य परंपरा से प्राप्त व्याकरण बुरे शब्दों को अलग करके अच्छे शब्दों का ज्ञान कराता है।
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डॉ. रीतेश कुमार पांडे

सहायक प्रोफेसर व्याकरण
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डॉ. केशव प्रसाद पौंडियाल

सहायक प्रोफेसर व्याकरण